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e i pi
यह इ, आई पाई आखिर है क्या बला ? यहाँ साधारण भाषा में समझाने की कोशिश करती हूँ | पहले पाई की बात करूंगी, फिर आई की, फिर इ की ; फिर घात (पावर) की और आखिर में इन सब के आपसी सम्बन्ध की |
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( I )तो पहले पाई समझते हैं — सोचिये की एक घडी है और एक छड़ी को धुरी से ३ बजे की और रखिये – यह कोण है ० डिग्री (साथ में दी हुई फिगर देखें –>| अब यह छड़ी घडी से उलटी दिशा में घूमेगी (अर्थात ३ से २, १, १२ …. फिर ९ फिर ६ और पूरा चक्र घूम कर फिर ३ बजे पर) और कोण बढ़ता जाएगा (यदि घडी की ही दिशा में घूमे तो कोण निगेटिव होगा – इसमें कोई राज़ की बात नहीं है – जब हम जोमेट्री पढ़ते हैं तो सीढ़ी रेखा के ऊपर के कोण + और नीचे के कोण – मानते हैं , इतना ही कारण है ) पूरा घूम आने के बाद का कोण फिर से ० डिग्री है – और ३६० डिग्री भी |
जिस तरह हम तापमान को डिग्री सेंटीग्रेड में भी पढ़ते हैं (जैसे – पानी १०० डिग्री सेंटीग्रेड पर उबलता है ) और फेरान्हाईट में भी (उसे १०० डिग्री फेरान्हाईट बुखार है ) उसी तरह कोण को डिग्री में भी नापा जाता है और रेडियन में भी | पूरा गोला घूम कर कोण ३६० डिग्री या २ पाई रेडियन होता है | अलग अलग कोणों के लिए यह फिगर देखें –>
पाई (रेडियन में नापा जाने वाला कोण) होता है, गोले की परिधि और व्यास का अनुपात ( pi = circumference / diameter) , और इसका गणितीय मूल्य है करीब करीब २२/७ = ३.१४
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( II )यह तो हुई बात पाई की – अब आते है आई पर – आई क्या है ?
अब थोडा सा बुनियादी गणित याद कर लेते हैं – संख्याएं होती हैं कई प्रकार की –
*** नेचरल नम्बर्स (१,२,३,४ …) ;;
*******होल नम्बर्स ( ०,१,२,३,४,….)
***इन्टीजर्स (० से + की तरफ भी १,२,३,४ …. और – की तरफ भे -१,-२,-३,-४ ….) ;;
******* रैशनल नम्बर्स ( = p/q जहां p और q दोनों इन्टीजर्स हों और q शून्य न हो) ;;
***इर्रेशनल नम्बर्स ( जो इस तरह न दिखाए जा सकें जैसे की ५ का वर्गमूल );;
******* रियल नम्बर्स (रैशनल और इर्रेशनल दोनों के समूह मिला कर रियल का समूह बनता है) |
अब आते हैं इमेजिनरी नम्बर्स पर – जो आई (i) के रूप में होते हैं |
याद करें की जब एक संख्या को खुद से गुणा किया जाए तो उसका वर्ग ( square ) बनता है | जैसे २ का वर्ग है दो दुनी चार , ३ का वर्ग है तीन तिया नौ ; ४ का वर्ग है चार चौक सोलह आदि | इसका उल्टा होता है वर्गमूल ( squareroot ) जैसे चार का वर्गमूल है दो ; पच्चीस का वर्गमूल पांच है |
सोचिये की आप दो को दो से गुणा करें – तो क्या मिलेगा ? चार मिलेगा न? और यदि (-२) को (-२) से गुणा करें तो ? मज़े की बात यह है की अब भी चार ही मिलेगा, क्योंकि जब हम वर्ग करते हैं तो – चिन्ह खो जाता है |
इसका अर्थ यह हुआ की ४ का वर्गमूल २ भी है और -२ भी है | अर्थात हम सिर्फ + संख्याओं के वर्गमूल निकाल रहे हैं |
और – चिन्ह वाली संख्याओं का क्या ? इसके लिए माना गया कि कोई ऐसी संख्या है जिसका वर्ग -१ है | अब क्योंकि हम जानते हैं की किसी असल संख्या का वर्ग तो -१ हो ही नहीं सकता , इसका अर्थ तो यह हुआ न की हमने जिस संख्या का वर्ग -१ को माना वह एक असल संख्या नहीं है, वह एक कल्पित संख्या है | और कल्पना को इंग्लिश में imagination कहते हैं | तो इस कल्पित संख्या का नाम हुआ – इमेजिनरी अर्थात imaginary जिसके पहली अक्षर i को हमने प्रयुक्त किया -१ के वर्गमूल के लिए | बस इतनी ही होती है “i “ और कुछ नहीं |
तो हमें यदि १०० का वर्गमूल चाहिए तो तो कोई समस्या नहीं है ; १० x १० = १०० तो सौ का वर्गमूल तो दस है ही | लेकिन यदि हमें [-१००] का वर्गमूल चाहिए तो हम लिखेंगे
[-१००] = [-१ x १००] जिसका वर्गमूल होगा [ i x १० ] = १० i |इतना ही राज है i का |
तो आई है [-१ का वर्गमूल] –> एक कल्पित (इमेजिनरी संख्या – i FOR FIRST LETTER OF IMAGINARY )
{और जब रियल संख्या और इमाजिनरी संख्या का जोड़ हो, तो काम्प्लेक्स संख्या बनती है जैसे २+३i }
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( III )अब बढ़ते हैं e ( इ ) की ओर | यह अक्षर है एक्सपोनेंशियल (exponential ) का पहला अक्षर| यह शब्द आपने सुना होगा रेडियो धर्मिता के सन्दर्भ में | जब युरेनियम या रेडियम जैसे रेडियो धर्मी पदार्थ किसी भी मात्रा में रखे जाते हैं (नेचरल कंडीशंस में) तो वे खुद ही क्षय (decay ) होते हैं | जितनी भी मात्रा हो, एक निश्चित अवधि के बाद उसकी आधी रह जाती है – इस अवधि को “हाफ लाइफ” कहते हैं| उदाहरण के लिए यदि एक घंटे में पदार्थ २०० से १०० किलो हुआ; तो फिर एक घंटे में वह १०० से ५०; अगले घंटे में ५० से २५ आदि होगा | यह एक घंटे का समय उस पदार्थ की हाफ लाइफ है | इस तरह के क्षय को एक्सपोनेंशियल डीके ( exponential decay ) कहते हैं |
इस exponential पहला अक्षर e इस्तेमाल होता है इस तरह के क्षय को दर्शाने के लिए और गणितीय मूल्य है २.७१८ |{ एक्सपोनेंशियल |}
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( IV ) अब बात करें घात की – घात को मैं ^ द्वारा लिखूंगी | जब हम किसी संख्या को खुद से गुणा करें तो हमें उसका वर्ग मिलता है | इसी तरह यदि हम किसी संख्या को अपने आप से (किसी और संख्या जितनी बार) गुणा करते हैं तो कहते हैं की पहली संख्या को दूसरी संख्या की “घात ” लग रही है – जैसे यदि दो को पांच की घात है अर्थात 2x2x2x2x2 = ३२ (= २ पावर ५ = २^५ ) ; और दो को दस की घात लगे तो होता है १०२४ (= २ पावर १० = २^१० )
सोचिये की e को घात लग रही है १ की तो मिलेगा २.७१८ ; इ को दो की घात अर्थात = २.७१८ x २.७१८ = [=e ^ 2 = ७.३८७] | यदि घात निगेटिव अर्थात ऋणात्मक हो, तो यह गुणा विभाजक में होगा जैसे यदि e को {-२} की घात है तो मिलेगा [e पावर -२ = e^(-२)= [१/ {e^२}] = [१/{२.७१८ x २.७१८} = ०.१३५ |
तो यदि इ (e) को + घात हो तो हमें १ से बड़ी संख्या मिलती है (क्योंकि २.७ के पावर का गुणा हो रहा है), और – घात हो तो १ से छोटी संख्या मिलती है (क्योंकि २.७ के पावर से विभाजन हो रहा है)
घात ( पावर ) के गणीतिकीय सिद्धांत हैं :-
(१) m ^ n = m x m x m x ….x m (self multiplication n times)
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( V ) अब सब साथ में – इ,आई, पाई, घात
अब तक हमंने देखा अलग अलग से पाई, आई, इ, और घात को |
अब हम जानते हैं कि (+1) x(+1) = (+1), aur (-1)x(-1) bhi = +1 एक बार फिर से ऊपर की फिगर के हिस्से देखें अब –>
इन सभी में (A, B, C, D में ) में गणितिकीय फोर्मुले नहीं हैं – ठीक नीचे फिर से गणितीकीय फोर्मुलों के साथ रिपीट किया है | आप चाहे तो पहली बार साधारण हिंदी में पढ़ें, और फिर से नीचे फोर्मुलों के साथ दोबारा पढ़ें
(A ) हमने देखा की जब काँटा बिलकुल नहीं घूमा है तब कोण है ० डिग्री या ० रेडियन – और तीर की इस शुरूआती स्थति को नंबर लाइन पर {+१} माना जाता है |
(+1) x (+1) = (+1) का अर्थ हुआ कि जब तीर या तो {बिलकुल न घूमे} या फिर {पूरे गोले को दो बार घूम कर लौट आये} – तो फिर से +१ पर ही खड़ा होगा |
इसे गणित की भाषा में कहते हैं कि एक्सपोनेंशियल बदलाव तो हो रहा है, किन्तु घात अब किसी रियल नंबर के बजाय इमेजिनरी कोण की है | तो इ अपने आप से गुणा होने के बजाये अब उतने कोण में घूम रहा है – जितने कोण की घात लगी हो |तो पहली फिगर ऐसी बनती है –> यहाँ या तो बिलकुल घूमा ही नहीं है तीर , या पूरा घूम कर लौट आया है (या तो शून्य या फिर 2pi रेडियन)
यदि दो बार (आधा गोला) घूमा जाए तो एक पूरा गोला होगा – अर्थात (-१)X (-१)=+१
यदि दो बार (चौथाई गोला) घूमा जाए तो आधा गोला होगा – अर्थात (i)^२ = {(i )^२}= {-१}
(D ) इसी तरह यदि तीन चौथाई गोला घूमा जाए तो यह फिगर बनेगी | यह कोण है ३ पाई / २ या फिर – पाई |
यदि यह कोण (३ pi /२ ) दो बार घूमा जाए तो भी हम डेढ़ गोला घूम कर -१ पर ही पहुँच जायेंगे अर्थात (-i )^२ = -१
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अब यह सब फिर एक बार देखें, गणित की भाषा में –>
इसे गणित की भाषा में कहेंगे
[e ^ 0 pi] = e ^ 0 = 1(रेखा बिल्कुल ना घूमे )
;; [e ^ 2 pi] = 1 (रेखा एक पूर्ण गोल घूम कर लौट आये )
;; [e ^ 4 pi] = {e ^ 2 pi} ^2 = 1 (रेखा दो पूर्ण गोले घूम कर लौट आये )
;; [e ^ 6 pi] = {e ^ 2 pi} ^ 3 = 1 (रेखातीन पूर्ण गोले घूम कर लौट आये )आदि ;
गणित की भाषा में
(हम पहले देख चुके हैं की १/२ की घात वर्गमूल दिखाती है , और e ^ ( २ pi i ) = +१ होता है )
इसका अर्थ है कि कोण यदि 2pi था तो पूरा गोला घूम कर हम +१ पर पहुंचे थे , अब कोण 1pi है तो हम आधा ही गोला घूम कर -१ पर आये हैं, घात आधी हो गयी है – तो पिछले उत्तर का वर्गमूल मिल गया है |
[e^ (1pi i)] x [e^ (1pi i)] = [e^ (2pi i)] = +१
e ^ ((1 pi I ) x 1/2 ) = e^ (1pi i/2)
यदि आपको यह कोशिश पसंद आई हो , और आप इस “गूढ़ मेथेमेटिक्स” को समझ पाए हों, आगे ट्रिग्नोमेट्री के sin cos आदि और युलर फोर्मुलाए जानना चाहें, तो बताएं, फिर आगे भी बात कर सकते हैं हम इस बारे में |